बिहार में गैर-यादव ओबीसी राजनीति: बदलते समीकरण और सत्ता संघर्ष

बिहार में गैर-यादव ओबीसी

 राजनीति: बदलते

 समीकरण और सत्ता संघर्ष

बिहार में गैर-यादव ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की राजनीति एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो राज्य के राजनीतिक संतुलन और सत्ता के समीकरणों को प्रभावित करता है। बिहार में ओबीसी समुदाय की आबादी काफी बड़ी है और इसमें यादवों के अलावा अन्य जातियां भी शामिल हैं, जैसे कुर्मी, कोइरी, कुशवाहा, तेली, धानुक, नाई, अहीर, माली, कुम्हार, और बढ़ई। इन जातियों ने समय-समय पर अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनाने की कोशिश की है और यादवों के वर्चस्व से अलग अपनी स्थिति को मजबूत करने की पहल की है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:

लालू प्रसाद यादव और यादव वर्चस्व: 1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में यादव और मुस्लिम वोट बैंक पर आधारित राजनीति बिहार में हावी रही। इस दौर में गैर-यादव ओबीसी को राजनीतिक प्रतिनिधित्व कम मिला, जिससे उनके बीच असंतोष बढ़ा।

नीतीश कुमार का उदय: 2000 के दशक में नीतीश कुमार ने गैर-यादव ओबीसी को संगठित करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कुर्मी और कोइरी जातियों के साथ अन्य गैर-यादव ओबीसी जातियों को अपने पक्ष में लाने का प्रयास किया। उनके नेतृत्व में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने गैर-यादव ओबीसी के समर्थन से मजबूत आधार तैयार किया।

सामाजिक न्याय की राजनीति का विस्तार: गैर-यादव ओबीसी जातियां जैसे कुर्मी (मुख्य रूप से नीतीश कुमार का समर्थन), कोइरी (उपेंद्र कुशवाहा और अन्य नेताओं का प्रभाव), और अन्य छोटी जातियां अपने राजनीतिक अधिकारों और हिस्सेदारी के लिए अधिक मुखर हुईं।

मौजूदा परिदृश्य:

गैर-यादव ओबीसी का बीजेपी की ओर रुझान: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने गैर-यादव ओबीसी वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश की है। पार्टी ने विभिन्न ओबीसी जातियों को प्रतिनिधित्व देकर उन्हें साथ जोड़ा है।

जाति जनगणना का मुद्दा: बिहार में जाति आधारित जनगणना की मांग गैर-यादव ओबीसी राजनीति का अहम हिस्सा है। यह समुदाय अपनी जनसंख्या के अनुपात में राजनीतिक और आर्थिक हिस्सेदारी की मांग कर रहा है।

छोटे दलों का उदय: उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता और अन्य छोटे दल गैर-यादव ओबीसी राजनीति को नया स्वरूप देने की कोशिश कर रहे हैं। इनका लक्ष्य है कि यादव वर्चस्व वाली ओबीसी राजनीति से अलग एक स्वतंत्र पहचान बनाई जाए।

महा गठबंधन और एनडीए का प्रभाव: बिहार में महागठबंधन (राजद, जेडीयू, कांग्रेस आदि) और एनडीए (बीजेपी और सहयोगी दल) के बीच संघर्ष में गैर-यादव ओबीसी एक निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ये समुदाय अक्सर सत्ता परिवर्तन में अहम भूमिका निभाते हैं।

चुनौतियां और संभावनाएं:

1. गैर-यादव ओबीसी समुदायों के बीच एकता कायम करना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि इन जातियों में सामाजिक और आर्थिक असमानता है।

2. यादव वर्चस्व वाली राजनीति से अलग अपनी पहचान बनाना और अपने मुद्दों को प्रमुखता देना गैर-यादव ओबीसी राजनीति का मुख्य उद्देश्य है।

3. जाति आधारित आरक्षण और प्रतिनिधित्व को लेकर इन जातियों में जागरूकता बढ़ी है, जो भविष्य में बिहार की राजनीति को प्रभावित करेगा।

निष्कर्ष: बिहार की गैर-यादव ओबीसी राजनीति तेजी से बदलते समीकरणों और गठबंधनों का हिस्सा है। यह समुदाय राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण वोट बैंक बन चुका है और आने वाले समय में इसकी भूमिका और भी अहम हो सकती है।

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