प्रशांत किशोर: जातीय राजनीति के दबाव में ब्राह्मण नेता बनने की चुनौती

 प्रशांत किशोर: जातीय

  राजनीति के दबाव में ब्राह्मण

 नेता बनने की चुनौती

बिहार में ब्राह्मण राजनीति: बदलते समीकरण और भविष्य की दिशा

बिहार की राजनीति में ब्राह्मण समुदाय की भूमिका ऐतिहासिक रूप से प्रभावी रही है, लेकिन वर्तमान समय में उनकी राजनीतिक स्थिति हाशिए पर है। राज्य की कुल जनसंख्या में ब्राह्मणों का हिस्सा लगभग 3% है, जो कि चुनावी राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए पर्याप्त नहीं माना जाता। इसके विपरीत, बिहार की राजनीति अन्य जातीय समूहों जैसे यादव, कुर्मी, भूमिहार, और दलित समुदायों के मजबूत नेताओं और बड़े वोटबैंक के इर्द-गिर्द घूमती है।

प्रशांत किशोर के लिए एक ब्राह्मण नेता के रूप में उभरने की चुनौतियां

प्रशांत किशोर (PK) ने "जन सुराज" अभियान के माध्यम से एक समावेशी राजनीति की शुरुआत की है, लेकिन बिहार में ब्राह्मण राजनीति के पुनरुद्धार और खुद को एक ब्राह्मण नेता के रूप में स्थापित करने में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

1. ब्राह्मणों की कम जनसंख्या और चुनावी प्रभाव का अभाव

बिहार की 12 करोड़ से अधिक जनसंख्या में ब्राह्मण समुदाय का हिस्सा सिर्फ 2-3% है। यह संख्या इतनी कम है कि अकेले ब्राह्मण वोट के सहारे किसी विधानसभा सीट पर जीत पाना भी कठिन है।

चुनौती:

  • जातीय समीकरणों का असंतुलन: यादव (14-15%), मुस्लिम (16-17%), कुर्मी (4-5%), भूमिहार (5-6%), दलित और अति पिछड़ा वर्ग के मुकाबले ब्राह्मण समुदाय का प्रभाव काफी कम है।
  • राजनीतिक हाशिए पर: ब्राह्मण वोट बैंक को आकर्षित करने के लिए वर्तमान में कोई मजबूत राजनीतिक ध्रुव नहीं है।

रणनीति:

प्रशांत किशोर को ब्राह्मणों को एक "संघटक" वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करना होगा, लेकिन उनकी राजनीति को ब्राह्मण समुदाय तक सीमित न रखकर अन्य जातियों के साथ जोड़ना होगा।

2. यादव, कुर्मी, भूमिहार और दलित नेताओं का वर्चस्व

बिहार की राजनीति में यादव समुदाय लालू प्रसाद यादव (RJD) के नेतृत्व में मजबूत है। इसी तरह, नीतीश कुमार (JDU) कुर्मी समुदाय के बड़े नेता हैं। भूमिहार समुदाय भाजपा और जदयू के बीच बंटा हुआ है, जबकि दलित वर्ग रामविलास पासवान के उत्तराधिकारियों के प्रभाव में है।

चुनौती:

  • मजबूत जातीय नेता: बिहार में हर प्रमुख जातीय समूह का एक स्थापित नेता है। यादव-लालू, कुर्मी-नीतीश, भूमिहार-अश्विनी चौबे या गिरिराज सिंह, और दलित-चिराग पासवान।
  • प्रशांत किशोर को इन मजबूत जातीय नेताओं के सामने खुद को एक समावेशी नेता के रूप में प्रस्तुत करना होगा।

रणनीति:

  • जातीय राजनीति से परे विकास और सुशासन पर केंद्रित राजनीति।
  • हर जाति के युवाओं और प्रगतिशील वर्ग को अपने साथ जोड़ना।
  • जातीय नेतृत्व के विकल्प के रूप में नई पीढ़ी के नेता की छवि बनाना।

3. ब्राह्मणों का भाजपा और कांग्रेस के प्रति झुकाव

ब्राह्मण समुदाय लंबे समय तक कांग्रेस का समर्थक रहा, लेकिन लालू यादव के दौर में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के चलते भाजपा की ओर शिफ्ट हो गया। भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे ने ब्राह्मणों को एक राजनीतिक मंच दिया।

चुनौती:

  • भाजपा ब्राह्मण समुदाय के लिए एक स्वाभाविक राजनीतिक ठिकाना बन चुकी है।
  • कांग्रेस, हालांकि कमजोर है, फिर भी ब्राह्मणों का एक हिस्सा उसमें विश्वास करता है।

रणनीति:

  • ब्राह्मण समुदाय के साथ भाजपा-कांग्रेस से निराश वर्गों को आकर्षित करना।
  • हिंदुत्व के मुकाबले विकासवादी राजनीति का एजेंडा पेश करना।

4. संगठन और आधार का अभाव

प्रशांत किशोर के पास वर्तमान में कोई मजबूत राजनीतिक संगठन नहीं है। "जन सुराज" अभियान जमीनी स्तर पर सक्रिय है, लेकिन यह अभी भी एक आंदोलन है, न कि एक राजनीतिक दल।

चुनौती:

  • बिहार की राजनीति में संगठन और कैडर आधारित दलों का महत्व।
  • RJD, JDU और BJP जैसे स्थापित संगठनों से मुकाबला करना।

रणनीति:

  • जमीनी संगठन तैयार करना: हर जाति और समुदाय के लोगों को साथ जोड़ना।
  • युवा नेतृत्व को प्रोत्साहन देना: ब्राह्मणों के साथ-साथ अन्य जातियों के युवाओं को भी शामिल करना।

5. ब्राह्मणों की विभाजित राजनीतिक स्थिति

ब्राह्मण समुदाय वर्तमान में किसी एक पार्टी या नेता के साथ पूरी तरह से जुड़ा नहीं है। वे भाजपा, कांग्रेस और जदयू में बंटे हुए हैं।

चुनौती:

  • समुदाय के भीतर एकता और नेतृत्व की कमी।
  • किसी एक नेता या पार्टी के प्रति पूर्ण निष्ठा का अभाव।

रणनीति:

  • ब्राह्मणों के साथ संवाद और एकता का निर्माण।
  • उनकी मांगों और मुद्दों को मुख्यधारा की राजनीति में जगह देना।

भविष्य की दिशा: प्रशांत किशोर के लिए क्या करना होगा?

  1. जातीय ध्रुवीकरण से परे:
    प्रशांत किशोर को ब्राह्मण वोट बैंक का समर्थन लेते हुए समावेशी राजनीति करनी होगी।

  2. संगठन निर्माण:
    "जन सुराज" अभियान को एक मजबूत राजनीतिक दल में बदलना होगा।

  3. युवाओं और महिलाओं को शामिल करना:
    युवा और महिला मतदाताओं के बीच अपनी अपील बढ़ाना।

  4. मुद्दों पर आधारित राजनीति:
    जातीय समीकरणों को तोड़ने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सुशासन जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देना।

  5. ब्राह्मण समुदाय को जोड़ना:
    ब्राह्मणों के सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व को पुनर्जीवित करते हुए उन्हें राजनीति में एक निर्णायक भूमिका दिलाने की कोशिश करना।

निष्कर्ष

बिहार में ब्राह्मण राजनीति वर्तमान में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। प्रशांत किशोर के लिए यह एक अवसर है, लेकिन सीमित ब्राह्मण वोट बैंक और मजबूत जातीय नेताओं के बीच खुद को स्थापित करना कठिन होगा। अगर वे जातीय राजनीति से ऊपर उठकर एक समावेशी और मुद्दों पर आधारित राजनीति कर पाते हैं, तो वे ब्राह्मणों के साथ-साथ अन्य जातियों का भी समर्थन हासिल कर सकते हैं।

प्रशांत किशोर को एक "ब्राह्मण नेता" से अधिक एक बिहार नेता बनने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

Comments

Popular posts from this blog

2025 बिहार विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरण और पार्टी रणनीतियों का विश्लेषण

बिहार के मुख्यमंत्रियों की सूची (शुरुआत से अब तक)

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: तेजस्वी यादव के लिए भविष्य की राह